आलेख:-
मोहर्रम का महीना इस्लामी साल का पहला महीना है। इस माह की 20 तारीख को अजमतों दिन मोहर्रम है। इस अवसर पर रोजे रखने एवं दस्तरख्वान वसी किया जाता है। जनाब शेरू खान बताते हैं कि मुहर्रम के दिन बड़े अहम वाकियात पेश आए। इस्लाम में इसकी बहुत अहमियत है।यौमे आशूरा ही को हजरत आदम अलै. की तोबा कुबूल हुई। हजरत नूह अलै. की कश्ती जूदी पहाड़ी पर इसी दिन ठहरी, हजरत इब्राहिम अलै. को इसी दिन नुबुव्वत अता की गई, उस वक्त का जालिम बादशाह, हजरत इब्राहिम अलै. को आग में डाल देता है, जिस दिन हजरत इब्राहिम अलै. को आग में डाला गया, मोहर्रम की 10 तारीख यानी आशूरा का दिन था, और इसी दिन की बरकत से नारे नमरुद (नमरुद की आग) हजरत इब्राहिम अलै. के लिए गुले गुलजार बन गई। बनी इसराइल को फिरओन से नजात इसी दिन मिली।
फिरऑन गर्क हुआ। और भी बहुत सारे वाकियात इस तारीख से जुड़े हुए हैं। करबला के मैदान में शहादतें हुसैन इसी तारीख को हुई, हजरत मुहम्मद (स.) के नवासे हजरत हुसैन (र.) ने यजीद के हाथ पर बैअत करने से इनकार कर दिया। क्योंकि यजीद इस्लामी तालीमात का पाबंद नहीं था। इस इंकार के नतीजे में हजरत हुसैन (र.)को अपने खानदान के बहुत सारे लोगों की जान का नजराना पेश करना पड़ा और आखिर में खुद भी शहादत का प्याला नौश फरमा लिया। लेकिन बातिल (अत्याचारी)के सामने सर नहीं झुकाया।
यौमे आशूरा के रोजे की भी बड़ी अहमियत है, हदीस में है कि रमजान के रोजे के बाद सबसे अफजल मोहर्रम का रोजा है। मोहर्रम के रोजे के साथ 9, 10 या 11 तारीख का रोजा भी रखा जाता है। इस दिन कसरत से तिलावते कुरआन, नवाफिल नमाज, खैर खैरात करने का एहतेमाम भी सवाब का जरिया बताया गया है।
शेरू खान
(समाजसेवी)